संवाददाता :गंगेश्वर दत्त शर्मा

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16 जनवरी, 2021 को नई दिल्ली में आयोजित इस सॉलिडेरिटी कन्वेंशन में विभिन्न राजनीतिक दलों की दिल्ली राज्य इकाइयों द्वारा, तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए किसान आंदोलन के समर्थन में, सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री को भेजे जाने वाले इस प्रस्ताव को पारित किया जाता है.

हम,अपने सदस्यों, समर्थकों के साथ ही जनमत के बड़े दायरे का प्रतिनिधित्व करते हैं जो,तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए किसानों के आंदोलन के प्रति अपनी एकजुटता और समर्थन व्यक्त करते हैं।हम मानते हैं कि बिना किसानों और उनके संगठनों से विचार विमर्श किए जिस तरीके से कृषि बिल को पास करवाकर कानून बनाया गया वह किसानों के जनतांत्रिक अधिकारों पर हमला है।

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यह केंद्र सरकार के तानाशाही रवैये को दर्शाता है।ये कानून राज्यों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण है, क्योंकि कृषि एवं इससे संबंधित मामले सातवें अनुसूची के हिसाब से राज्य सूची में आते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि केंद्र सरकार संवैधानिक प्रावधानों को पीछे धकेलते हुए सत्ता के केन्द्रीयकरण का खतरनाक काम कर रही है।ये तीन कृषि कानून न सिर्फ किसानों के हितों के खिलाफ है, बल्कि यह भारत के सभी नागरिकों के हितों के भी खिलाफ है।

बड़े कृषि-व्यवसायियों को विभिन्न प्रकार की विशेष रियायतें देकर कृषि बाजार में घुसाने के लिए ए.पी.एम.सी. से संबंधित अधिनियम बनाया गया है। जिससे आगे चलकर इन बड़े कृषि-व्यवसायियों का वर्चस्व कृषि बाजारों पर कायम हो जाएगा और सरकारी नियंत्रण वाली मंडियां, जहां अनाज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है, कमजोर होने लगेंगी। इससे खाद्यान्नों की खरीद में कमी आएगी, जिसका आगे चलकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे न सिर्फ किसानों को नुकसान होगा, बल्कि राशन वितरण प्रणाली पर निर्भर लोगों को इसका नुकसान होगा। गैर-सरकारी खरीदारी में एमएसपी की गारंटी देने के लिए कानून बनाने से इंकार करना इस बात का प्रमाण है कि सरकार का उद्देश्य इन कानूनों के जरिए अडानी और अंबानी जैसे कॉरपोरेट्स और उनके वैश्विक समकक्षों को लाभ पहुंचाना है।

कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग से संबंधित कानून जिसमें किसान को कृषि-कंपनियों की दया पर छोड़ दिया गया है, क्योंकि सरकार ने अनुबंध समझौते में गारंटर होने से इनकार कर दिया है। आश्चर्य तो यह कि यदि ठेके की कंपनी अनुबंध को तोड़ दे या धोखा दे तो किसान के पास कानूनी निवारण का कोई उपाय नहीं है। यह कानून जिसमें कीमत की कोई गारंटी नहीं है, कंपनियों के आगे किसानों की हालत को और दयनीय बना देगा। इन दोनों कानूनों में, न्यूनतम मूल्य के बिना, किसानों का आर्थिक संकट और तेज होगा। जिसके कारण किसानों को अपनी उस जमीन को बेचने के लिए मजबूर होना होगा जो उनकी संपत्ति ही नहीं, उनके जीवन का आधार भी है।3. तीसरा कानून जो कृषि वस्तुओं के विशाल भंडारण की अनुमति देता है, वह जमाखोरी को वैध बनाने के कानून के अलावा और कुछ नहीं है। बड़ी कंपनियां अनाज या अन्य स्टॉक की हुई कृषि जिंसों जैसे आलू या प्याज को गोदामों में रोककर, कृत्रिम अभाव बना सकती हैं और फिर ऊंचे दामों पर मुनाफाखोरों को बेच सकती हैं जो उपभोक्ताओं को बुरी तरह प्रभावित करेगा।

किसानों के ऊपर लगातार दमन एवं चल रहे किसान आंदोलन के बारे में केंद्रीय मंत्री एवं सत्ताधारी भाजपा के नेताओं द्वारा लगातार ओछी बातें करने, गालियां देने के खिलाफ कड़ा प्रतिरोध दर्ज करते हुए मांग करते हैं कि तीन कानूनों को निरस्त किया जाए और एमएसपी की गारंटी देने के लिए एक कानून के लिए किसानों के साथ चर्चा शुरू की जाए, इसके साथ ही नए खरीद केंद्र खोले जाएं जैसा कि स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की थी।हम किसानों की आंदोलन को तेज करने की अपील का समर्थन करते हैं। यह हमारा संकल्प है।

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