लेखिका : सरिता रावत

लेखिका : सरिता रावत

उत्तराखंड में महिलाएं हमेशा शराब जैसे नशे और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ खड़ी रही हैं। महिलाओं ने कई बार आंदोलन किए। अब राज्य में महिलाओं ने संगठन बना कर शराब के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है। दरअसल शराब का सीधा असर महिलाओं के पारिवारिक जीवन पर पड़ता है, इसलिए कम से कम इस मामले में प्रदेश की महिलाओं में एकजुटता देखी जा सकती है।


उत्तराखंड की गिनती एकमात्र शराबी राज्य के रूप में होती है। यहाँ के लोग रोजगार की तलाश में अपने घरों को छोड़कर पलायन करने को मजबूर हैं। उत्तराखंड के लिए सूर्य अस्त, पहाड़ मस्त की संज्ञा शराब से जोड़ दी गई है, तो इसका कारण पहाड़ का शराब से शाम होने के बाद का गहन रिश्ता मान लिया गया है पर इसका दूसरा पहलू भी है। असल में पहाड़ों की खूबसूरती सुबह सूरज की किरणों के साथ बढती है और दोपहर तक थकान की ओर चली जाती है किन्तु शाम को धूप की तपन खत्म होते ही बेहद शानदार अनुभूति पैदा करते हैं। इसी सन्दर्भ में यह संज्ञा दी गई थी।


आपको जानकर हैरत होगी कि 1815 में सम्पूर्ण राजशाही राज में शराब आमजन तक उपलब्ध नहीं थी लेकिन 1880 में ब्रिटिश राज स्थापित होने के बाद सरकारी शराब की दुकानें खोली गईं और तब से परम्परागत तरीके से किये जाने वाले नशे का स्वरूप शराब के रूप में बदल गया, जिसने उत्तराखंड को तबाह करने का काम किया।

शराबबंदी को लेकर आमजन में भारी आक्रोश रहा और तमाम महिलाओं ने मिलकर इसका विरोध किया हालांकि महिलाओं के लम्बे संघर्ष के बाद सरकार को सुध आई और 1 अप्रैल, 1969 को उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ में शराब बंदी लागू कर दी गई। वहीँ 1970 में टिहरी और पौड़ी गढ़वाल में भी शराब बंदी लागू हो गई, किंतु 14 अप्रैल, 1971 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस शराबबन्दी को अवैध घोषित किया। बाद में सरकार ने आबकारी कानून में परिवर्तन कर शराब के नये लाइसेंस जारी करने का काम किया तब से देवभूमि की रीढ़ महिलाएं परेशानी का सामना कर रही हैं।


सरकारों के प्रोत्साहन के बावजूद महिलाएं निराश नहीं हैं। उत्तराखंड के सामाजिक तानेबाने में महिलाएं बेहद सशक्त हैं। महिलाओं ने शराब को लेकर मुखर विरोध प्रदर्शन किया और सत्ता को झुकाने का काम कर उत्तराखंड के 5 जिलों में शराबबंदी लागू करवाने का काम किया।


शराब के खिलाफ महिलाओं की मुहिम का असर राज्य में देखा भी जा सकता है। यहां के सैंकड़ों परिवारों के पुरूषों को शराब छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। कहीं-कहीं तो शराब पीने पर पुरूषों पर जुर्माना लगाने का नियम बनाया गया, कहीं पर सामाजिक बहिष्कार करने का निर्णय लागू किया गया।


महिलाओं की शराब जैसी बुराइयों के खिलाफ मुहिम रंग ला रही है। उत्तराखंड के कई गांवों में शराब का प्रचलन बंद हो गया है। विवाह-शादियों में और अन्य मौकों पर कई जगहों पर अब शराबी सड़कों, गलियों में झूमते दिखाई नहीं देते। यह समाज के लिए एक शुभ, सकारात्मक संकेत है।

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