लेखिका: पलक त्रिपाठी
एक पहाड़ पर कैसे चढ़ना है, महज कुछ टिलो पर चढा कर पूरे पहाड़ पर चड़ने का रास्ता दिखा देते है।
कभी पिता के समान डाट कर हमें कर्तव्य के प्रति प्रेरित कर जाते है।
तो कभी मां के समान खिल-खिलाकर हँसना सीखा देते हैं।
शायद यही कारण है कि गुरु परमेश्वर से भी उच्च पद का दर्जा पाते है।
डर को हमारे अंदर से निकाल के निडर बना देते है।
ज्ञान से आत्मसम्मान तक का ज्ञान दे जाते है।
न जाने जीवन में कितने किरदार निभाते है।
हे गुरुवर हम आप को शीश नवाते है।।
हम आपको प्रणाम करते हैं ।।
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