रचयिता साहित्य संस्थान मंच के 3 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में रचयिता साहित्योत्सव का दो दिवसीव कार्यक्रम शंकरलाल ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत रामेश्वर राय एवं रचयिता के सदस्यों के द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसके पश्चात आस्था दीपाली ने सरस्वती वंदना करते हुए कार्यक्रम में सहभाग किया।

कार्यक्रम के पहले सत्र में हिंदू कॉलेज के प्रोफेसर रामेश्वर राय से उनके व्यक्तिगत एवं विश्वविद्यालयी अनुभवों पर संवाद किया गया। उन्होंने जीवन, शिक्षा एवं शिक्षक की भूमिका पर अपनी बात रखी। सर ने ‘शिक्षकीय पेशे को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से दूर रखने पर जोर दिया।’
साहित्योत्सव में बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका गीतांजलि श्री से शब्द और स्मृति शीर्षक के संवाद किया गया जिसमे उन्होंने एक व्यक्ति की सृजनात्मकता और उनकी अपनी रचनात्मकता पर बात रखी। उन्होंने अपनी रचनाकार की यात्रा का आरंभिक बिंदु एक ट्रेन की यात्रा के एक दृश्य से माना और आज यहां तक कि साहित्यिक यात्रा पूरी करने की बात की। गीतांजलि श्री के अनुसार “दुनिया को साहित्य की सख्त जरूरत है क्योंकि वो उम्मीद और जीवन का द्योतक है।”
साहित्योत्सव में हिंदी के वरिष्ठ कवि मदन कश्यप, सविता सिंह, अनामिका, जितेंद्र श्रीवास्तव, रजत रानी मीनू, देवी प्रसाद मिश्र ने अपनी कविताओं के माध्यम से श्रोताओं को अपने जीवन और समाज के प्रति संवेदित किया एवं समाज के प्रति विचार करने पर मजबूर कर दिया। कवियों ने मशीन और आपाधापी से भरे इस जीवन में मानवीय संवेदना के प्रति श्रोताओं को सचेत करने का प्रयास कवियों में द्वारा किया गया।
कार्यक्रम के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में समसामयिक विमर्श, पुस्तक परिचर्चा एवं प्रतियोगी परीक्षाओं पर केंद्रित संवाद का आयोजन किया जिसमें जाकिर हुसैन काॅलेज के हिंदी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत विजेंद्र चौहान का साक्षात्कार साहिल कैरो जी ने लिया। और मंच संचालित मुस्कान जी ने किया। साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा कि मैं जहां भी रहा हूँ वहां अनफिट रहा हूँ इसलिए लोग मुझे पसंद नहीं करते लेकिन अनफिट होना मेरी प्रकृति है जिसे में इंज्वाय करता हूँ। कार्यक्रम के तीसरे सत्र में ‘हिंदी साहित्य की विविधता और वंचित वर्गों की रचनात्मकता’ विषय पर वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में वरिष्ठ प्रोफेसर के पद पर कार्यरत प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन और दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु काॅलेज के हिंदी विभाग के प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी जी को आमंत्रित किया गया। प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन ने कहा कि विमर्श आधारित साहित्य ने संवेदना के दायरे को बढ़ाते हुए नए अनुभवों को जोड़ा है। वहीं बजरंग जी ने कहा कि दलित साहित्य में रचनात्मकता के दोनों आयाम हैं जिनमें आक्रमकता और विनम्रता दोनों हैं। इन दोनों महान विभूतियों का साक्षात्कार लौह कुमार ने लिया और मंच संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की शोधार्थी कीर्ति ने किया। इसके उपरांत राजू शर्मा के उपन्यास ‘ऐ मेरे वतन’ उपन्यास का लोकार्पण और चर्चा का आयोजन किया गया जिसमें डाॅ. प्रवीण कुमार जी ने उपन्यास के संदर्भ में लेखक से बातचीत की। इसके साथ ही राहुल कुमार रजक, प्रज्ञा घोष और अक्षिता स्याल ने भारतीय नृत्य कला का प्रदर्शन किया। बांसुरी वादन पुष्पराज गुर्जर और गुंजन कुमार झा ने अपनी सुरीली आवाज़ से सभी दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया।
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