लेखिका- सरिता रावत-विश्वेश्वरी सिंह रावत
देश की आज़ादी से लेकर अब तक के लोकतांत्रिक व्यवस्था में देवभूमि की महिलाएं बेहद सक्रिय रहीं हैं । लोकतांत्रिक व्यवस्था की बात हो या सामाजिक व्यवस्था एवं अधिकारों की बात हो उत्तराखंड की महिलाओं ने अपना सिक्का जमाया है। यहां की महिलाएं अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के साथ साथ अपने कर्तव्यों के प्रति अत्यंत जागरूक रहीं है। राजनीतिक दृष्टि से भी महिलाएं बहुत जागरूक हैं जिससे स्वतः ही देश की राजनीति में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हुई ।

उत्तराखडं की महिलाओं में जन्मजात से स्वावलंबी ऊर्जा, कौशल, ज्ञान एवं क्षमता जबरदस्त रही है। यही कारण है कि पिछले कुछ समय से उत्तराखंड की राजनीति में महिलाओं की भूमिका कभी बढ़ी है।
महिलाएं राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ तो हैं ही, वे राज्य में लोकतंत्र की भी बुनियाद हैं। यहां महिलाएं अपनी राजनीतिक पसंद को लेकर भी उतनी ही स्वतंत्र एवं सशक्त हैं जितना वे अपने तमाम सामाजिक ,आर्थिक क्षेत्र में हैं। आपको बता दें कि
पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग के समर्थन में महिलाओं का जबरदस्त सैलाब पहली बार सड़कों पर उतरा था तब यह उनकी राजनीतिक जागृति का ही हिस्सा था।
पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग के समर्थन में महिलाओं का जबरदस्त सैलाब पहली बार सड़कों पर उतरा था तब यह उनकी राजनीतिक जागृति का ही हिस्सा था।
बदलते दौर की बात करें तो पिछली बार उत्तराखण्ड की 70 विधानसभा सीटों पर 4 महिला विधायक थीं। उस समय 72 महिलाएं चुनावों में खड़ी हुई थीं। इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं को राजनीति के मैदान में उतरना महत्वपूर्ण है। भले ही इनमें से कांग्रेस से इंदिरा हृदयेश, अमृता रावत और भाजपा से विजया बडथ्वाल व आशा नौटियाल को विजय हासिल हुई। इंदिरा संसदीय कार्यमंत्री से लेकर पीडब्ल्यूडी मंत्री रहीं। रेखा आर्य भी मंत्री रहीं। मालाराज लक्ष्मी लोकसभा सदस्य रहीं।
वहीं 2022 का चुनाव राज्य का पांचवां विधानसभा चुनाव रहा। इस बार भाजपा ने सर्वाधिक 8 महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया। वहीं राज्य के चुनाव को त्रिकोणीय बना रही आम आदमी पार्टी ने 7 महिलाओं को टिकट दिया और कांग्रेस ने 5 महिलाओं को पार्टी का उम्मीदवार बनाया।
निर्दलियों सहित कुल 45 महिलाएं चुनावी जंग में उतरी थीं।
विजया बड़थ्वाल तो तीन बार विधायक चुनी गईं। सरिता आर्य, रितु खंडुरी, मीना गंगोला, रेखा आर्य, ममता राकेश, मुन्नी देवी शाह, चंद्रा पंत, शैला रानी रावत, वीणा महराणा विधानसभा में जनता की आवाज बन कर पहुंचीं।
उत्तराखंड कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा माहरा दसौनी, सुनीता टम्टा, भाजपा से जुड़ी रही सुशीला बलूनी, रेणु बिष्ट, सविता कपूर, कुंवरानी देवयानी का भी राजनीति में परिचित नाम हैं।
रितु खंडूरी उत्तराखंड विधानसभा की निर्विरोध पहली महिला अध्यक्ष बनी हैं। राज्य की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर उनका निर्वाचन उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महिलाओं के अमूल्य योगदान की स्वीकृति है। उन्होंने उत्तराखंड प्रदेश भाजपा महिला अध्यक्ष पद की बागडोर भी संभालीं तो सरिता आर्य महिला प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रही हैं। अगर बात करें वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव की तो तब कांग्रेस ने कुल आठ महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए।
इनमें से इंदिरा हृदयेश हल्द्वानी, शैलारानी रावत केदारनाथ, अमृता रावत रामनगर और सरिता आर्य नैनीताल सीट से जीतने में कामयाब रही थीं। हालांकि ज्वालापुर सीट से ब्रजरानी, यमकेश्वर से सरोजनी कैंत्युरा, डीडीहाट से रेवती जोशी और लैंसडाउन से ज्योति गैरोला को हार का मुंह देखना पड़ा था।
2014 में हुए उपचुनाव में सोमेश्वर विधानसभा सीट से रेखा आर्य और भगवानपुर सीट से ममता राकेश विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुई थीं।
यह सब राजनीतिक में महिलाओं के बढते दखल की मिसालें हैं।
वहीं 2017 विधानसभा चुनाव पर नज़र डालें तो ये चुनाव मुख्य तौर पर दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के बीच लड़ा गया था, बीजेपी बनाम कांग्रेस। भाजपा ने ने 5 महिलाओं को अपना उम्मीदवार बनाया तो कांग्रेस ने 8 महिलाओं को टिकट दिया। इसी तरह से राजनीति में आधी आबादी अपनी पैठ मुक़म्मल करे तो राजनीति का स्वरूप बड़ी मजबूती से बदलेगा, क्योंकि महिला के अंदर सामाजिकता, व्यवहारिकता, सत्य-असत्य के आंकलन का एक नैसर्गिक ज्ञान होता है। इससे राजनीति में एक शुचिता पैदा होगी। निश्चित ही महिलाएं राजनीति में ख़त्म हो रही संवेदना को जीवित करने की एक उम्मीद हैं और उत्तराखंड की महिलाएं इसकी जीती-जागती मिसाल हैं।
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