लेखिका: सरिता रावत

अतीत के पन्नों पर नज़र डालें तो उत्तराखंड राज्य की आत्मनिर्भर एवं सशक्त महिलाओं का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय योगदान रहा है। राज्य की महिलाओं ने समय-समय पर आने वाली चुनौतियों का मजबूती सामना किया है।
महिलाओं ने अपने आँचल को इंकलाबी परचम के लिए हमेशा फैलाए रखा।
उत्तराखंड की महिलाओं ने आजादी के वक्त बड़ी जबरदस्त भूमिका निभाई थी। उल्लेखनीय है कि 1930 में छिड़े नमक सत्याग्रह आंदोलन और पेशावर कांड में उत्तराखंड की महिलाओं ने गढ़वाल सैनिकों के विद्रोह का भरपूर सहयोग कर ब्रिटिश राज के खिलाफ युद्ध में मुखर होकर अपनी ताक़त का परिचय दिया। महिलाओं ने जगह-जगह जाकर एकजुटता का आह्वाहन किया। इसके परिणामस्वरूप 5 मई, 1930 को महिलाओं के एक बड़े हुजूम ने अल्मोड़ा की नंदा देवी के मैदान में एकत्रित होकर ब्रिटिश राज को अपना आक्रोश दर्ज़ करवाया, जिससे ब्रिटिश राज को निपटने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी।
इस पूरे आन्दोलन की बागडोर भागुली देवी और कुंथी देवी के कन्धों पर थी। यह आन्दोलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया और 25 मई, 1930 को आन्दोलनकारियों ने अल्मोड़ा नगर पालिका में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया। हालाँकि इससे दो दिन पूर्व 23 मई, 1930 को तेज़ तर्रार नारी शक्ति का रूप बिशनी देवी साह ने अल्मोड़ा के कांग्रेस भवन में तिरंगा फ़हरा कर ब्रिटिश हुकूमत को चेता दिया था कि उत्तराखंड की महिलाएं अत्याचार के खिलाफ मैदान में उतर गई हैं। इसके पश्चात् ब्रिटिश हुकूमत ने बिशनी देवी को जेल में बंद कर दिया। बिशनी देवी साह स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल जाने वाली उत्तराखंड की पहली महिला थीं। बात देश की आजादी की हो या राज्य को पृथक करने की, तो महिलाओं ने पूरी बागडोर अपने कंधों पर ली।
उत्तराखंड राज्य बनने में यहाँ की महिलाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी रही, जिसके कारण 9 नवम्बर, 2000 में उत्तराखंड राज्य अपने अस्तित्व में आया। वैसे हर किसी को पहाड़ों की सुन्दरता अपनी ओर खींचती है, लेकिन इस ख़ूबसूरती को बनाने और बचाने में यहाँ की खूबसूरत ताकतवर स्वावलंबी महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
चिपको आन्दोलन उत्तराखंड के सौन्दर्य को बचाने की एक बड़ी मिसाल है। इस आन्दोलन का नेतृत्व 23 वर्षीय गौरा देवी ने किया था। इसके अलावा उत्तराखंड की महिलाओं ने कई जन आंदोलनों का नेतृत्व किया। जल, जंगल और जमीन को बचाने में उत्तराखंड की महिलाओं ने अग्रणी भूमिका निभाई। यही कारण है कि आज भी यहाँ की धरती स्वर्ग बनी हुई है। यहाँ की महिलाओं ने पहाड़ों के सौन्दर्य को बचाए रखने के लिए बड़ा संघर्ष किया है। राज्य के विकास, उसके उत्थान एवं अपने अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद की है।
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